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स्त्री शब्द सुनते ही हमारे दिमाग में एक आकृति अपने आप बन जाती है जो एक मां, पत्नी, बहन, दादी या जो भी रिश्ते हो ,बस किसी भी औरत को हम सोच लेते हैं ..
हां यह कहीं ना कहीं ठीक भी है स्त्री को स्त्री ही कहेंगे ना...
मगर मुझे कभी-कभी लगता है स्त्री बस कोई शारीरिक संरचना नहीं है जिसे देखकर हम कहते हैं कि वह स्त्री हैं स्त्री किसी भी शारीरिक मानचित्र से परे है..
मुझे लगता है स्त्री "गुण "हैं जो हम सब में है चाहे वह औरत हो या मर्द ,हर पुरुष में स्त्री गुण होता है और हर स्त्री में पुरुष गुण..
जब एक मर्द पूरी तरह किसी भी औरत को समर्पित होता है तो हम कह सकते हैं कि वह उसका स्त्री गुण है या जब एक औरत किसी पुरुष के सामने कठोर और मजबूत पर जाती है तो हम कह सकते हैं कि उसका पुरुष गुण है..
आज ना जाने कितनी कविताएं कितनी ही रचनाएं लिखी गई होंगी नारियों पे, नारीवाद पर..
कितने लोगों ने तो मुझसे भी पूछ लिया कि आप तो आज जरूर कुछ लिख रहीं होगीं ,मगर मैं उन्हें क्या कहूं कुछ समझ नहीं आता..मैं बस हुं में जवाब देती हूं..
मुझे नहीं लगता कि स्त्रियों के लिखने के लिए ,उन्हें पढ़ने के लिए, समझने के लिए उनके हक पर आवाज बुलंद करने के लिए, 1 दिन होना चाहिए..ये तो वो गुण है जिसका रहस्य हमे समझने में जीवन बीत जाता है..
मुझे लगता है अगर मैं स्त्री कहूं ,तो उसमे सब औरतों और मर्दों का संबोधन हो जाए..
जिनमें स्त्री गुण विद्यमान है।
और मुझे लगता है शायद आत्मा का कोई नहीं लिंग भी नहीं होता उसे बस जो शरीर मिलता है उसी तरह कम और ज्यादा गुण होते हैं उसमें।
एक किन्नर पुरुषों जैसा मिलता जुलता शरीर पाकर भी औरतों जैसे बर्ताव करते हैं
इसका मतलब यह नहीं है कि उसमे पुरुष के कोई गुण नहीं है बस उसका स्त्री गुण ,उसके पुरुष देह पर भारी पड़ जाता है..
मुझे उन महिलाओं की बातें भी सही नहीं लगती जिनका मानना है कि पुरुषों ने हमेशा स्त्रियों का शोषण किया है..
हर युग में स्त्री पुरुष दोनों का शोषण कहीं ना कहीं होता आया है कभी स्त्री के हाथों पुरुष शोषित हुआ है तो कभी पुरुषों के हाथों स्त्रियां...
अगर एक उदाहरण हम द्रौपदी का लेते हैं एक उदाहरण हमें शूर्पणखा का भी लेना चाहिए..
नारीवादिता अच्छी बात है मगर वहीं तक अच्छा है जहां तक आप किसी निर्दोष पुरुष या उसके पुरुषत्व को ठेस ना पहुंचाते हो..
मर्द और औरत हमेशा से दोनों एक दूसरे के पूरक हैं
सम्मान, मोहब्बत ,प्यार और ख्याल की जरूरत उन्हें भी है..
हे स्त्री ,उनमें मौजूद स्त्री मन को भी तुम समझना अगर वो रोना चाहे तो तुम अपने गोद में उसे जी भर कर रो लेने देना.. तुम कहना कि तुम रो सकते हो बेझिझक,इससे तुम्हारा पुरुषत्व खतरे में नहीं आएगा।
तुम उसके मन को भी कभी समझने की कोशिश करना..
और याद रखना कि मर्द और औरत दोनों ही जरूरी है संसार के लिए जैसे प्रकृति और पुरुष।
और ये बातें कभी न कभी कहीं न कहीं पहले भी लिखी जा चुकी होगीं..
मगर अफसोस,
मुझे फिर से इन सब पर वही बातें दुहरानी पड़ रहीं हैं..
और बस आज के दिन ही ना चाहते हुए भी उसी भीड़ का हिस्सा बनना पर रहा है..
और मुझे ये भी पता है कि आज ये लिखकर भी कोई फायदा नहीं है नारीवाद का नारा फिर भी लगता रहेगा।
-अश्वेत
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