क्यूं आज भी मुझे तुम्हारी
तलाश रहती है
क्यूं आज भी मुझमें,
इक अबूझ सी प्यास रहती हैं।
तुम नहीं हो मेरे, ये मालूम है मुझे
फिर भी न जाने क्यूं तुम्हारे
लौट आने की उम्मीद में ही,
मेरे जिस्म में सांस रहती है।
एक अर्सा हुआ तुम्हें देखे बिना
अब आंखों में नमी
और हरदम थकान सी रहती है।
तन्हाइयों ने अब्भी दामन छोड़ा नहीं है
आज भी मेरे भीतर कहीं,
हिज़्र की आग जलती है ।
धधकती है तो कभी बुझती है
हर पल मेरे साथ रहती है।
क्यों रोशनी में भी मुझे
रोशनी की तलाश रहती है ।
क्यूं भीड़ में भी मुझे इक
तुम्हारी ही तलाश रहती है।
इस जिस्म से तो कबका
मेरी रूह जुदा हो जाती,
बस,इक बार ही सही
तेरे दीदार की ख्वाहिश में
मेरी आंखों में रोशनी,
मेरे जिस्म में अब तक,
थोड़ी सी जान बाक़ी है।
- अश्वेत
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