लोग चांद को देखकर
महबूब को याद करते हैं।
मुझे तो तुम्हारे सिवा
कुछ याद ही नहीं रहता,
ना चांद ,ना तारे ,
ना धरती, ना आकाश,
कुछ भी नहीं।
कभी कभी तो कुछ
ऐसा भी हो जाता है
कि मैं तुममें ही कहीं
गुम हो जाती हुं।
आंसुओं से सराबोर
अपनी आंखों में,
मैं ख़ुद ही डुब जाती हुं,
मैं खुद को भी अक्सर
भूल जाती हूं।
जब ढुंढने पे भी न मिलूं मैं
तो मैं ख़ुद को तुममें तलाशती हुं,
और फिर मुझे ये एहसास होता है
कि तुम इस कदर बसे हो
मुझमें कि मैं हर दफा
"मैं" से "तुम" हो जाती हूं।
-अश्वेत
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