मैं उन लोगों में से हूं, जो यह मानते हैं कि हमारा जन्म संसार में किसी ना किसी उद्देश्य के लिए ही हुआ है।
कुछ अधूरे काम जो बाकी रह गए थे ,वो पूरे करने के लिए।
मगर मैं कभी-कभी ये सोचने पर मजबूर हो जाती हूं
कि जब उद्देश्य तय है,
तो हम क्यूं व्यर्थ के बंधनों में पर कर ख़ुद को उलझा लेते हैं...
क्यूं कोई हम से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है?
क्यूं किसी का साथ जीवन में इतना जरूरी हो जाता है?
क्यूं किसी का बात करना हमारी होठों पर मुस्कुराहट और ना बात करना हृदय में पीड़ा उत्पन्न करता है?
मुझे नहीं पता प्रेम क्या होता है?
मगर,
मैं समझ नहीं पाती की
कोई शख्स इतना जरूरी क्यूं हो जाता है,
कि उसके बगैर हम ख़ुद के वजूद को भी
भुलाने लाने लग जाते हैं ?
क्यूं किसी की उंगलियों से मोह के धागे कुछ इस तरह उलझ जाते हैं की उन्हें सुलझाने के लिए,
एक ज़माना भी कम पड़ जाता है?
मुझे नहीं पता प्रेम क्या होता है
मगर,
तुम तक आते-आते
हम खुद को भी भूला देते हैं।
कभी कभी सोचती हुं कि आखिर
कोई जीने की वज़ह कैसे बन जाता है?
विरह में काटे गए वो प्रतिझा के कड़वे पल ,
किसी के एक दरस मात्र से हि कैसे मीठे फल बन जाते हैं?
क्यूं उसकी कमीयों को भी हम सहृदय स्वीकारने लगते हैं?
क्यूं उसके बहाए गए आंसू, हमारे लिए सबसे किमती मोती बन जाते हैं?
क्यूं किसी के स्पर्श से इस बेजान से
बदन में फिर से जीवन की लौ जाग उठती है?
क्यूं उसके करीब आने से चंद्रमा भी अपनी रौशनी
मद्धम कर लेता है?
क्यूं किसी का करीब आना,
समेट लेता है सारे एहसासों
को ख़ुद में,
और दुर जाने से मन बिखर जाता है किसी
टुटे हुए कांच की तरह जो कदम कदम पे चुभते हों?
क्यूं कोई इस हद तक हमें बदल देता है
की हम ख़ुद के ना होकर
उसके हो जाते हैं?
मुझे नहीं पता प्रेम क्या होता है,
मगर
तुम इक रोज़ आना इतमिनान से और
मेरी कविताओं के हर प्रश्न का जवाब दे जाना।
मेरी कविताएं प्रतिझा करेगी तुमहारा,
मेरी मौत के बाद भी,
वो जीवित रहेंगी मेरी डायरी के पन्नों में।
-अश्वेत
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